बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 23 नवंबर 2013

नज़्म का नक्शा


किसी दर्द की सिरहाने से....
बड़ी चुपके से निकलती....
अधमने मन से
बढ़कर कलम पकड़ती.....!!!

कुछ पीले पत्र....
पर गोंजे गए शब्द....
कभी उछलकर रद्दी मे जाते....
कभी महफ़िलों मे रंग जमाते....!!

शायद ही कोई होता ....
जो बना पाता किसीके
"नज़्म का नक्शा"....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

बचपन


भीख की आधी कटोरी 
मजबूरी से भरकर.....
ज़िंदगी के ट्राफिक सिग्नल 
लांघता बचपन....
इसी तेज़ी मे जाने कितने 
झूठे नियम तोड़कर.....
खुद को ठगा-ठगा हुआ सा 
मानता बचपन.....!!! 

होटलो के खुरदुरे बर्तन को 
माज़-माज़कर.....
कितनी कड़वाहट खुद को 
समेटता बचपन.....!!!
सुबह से शाम तक 
कबसे पेट दबाये बैठा.....
झूठन से ही अंत मे भूख 
मिटाता बचपन......!!!

थोड़े से दुलार ढेर सारे 
प्यार खातिर कब तक.....
कूड़े की गठरों मे उम्मीदों को 
तलासता बचपन....!!!
सुख की छाँव से 
कोसों दूर तलक बैठकर.....
धूप मे परछाइयों को गले लगा 
बिलखता बचपन.....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

मकान बदल जाते



चीख के हर रोज़ अज़ान बदल जाते.....
इंसान ठहरे रहते मकान बदल जाते....!!!

उम्मीद इत्तिला ना करती गुज़रने की...
धूप के साए ओढ़े श्मशान बदल जाते....!!!

दोस्ती-यारी भी अब रखते वो ऐसों से...
एक छत तले कितने मेहमान बदल जाते....!!!

साथ तो आखिर तक ना देता अक्स तेरा....
दिन चढ़ते परछाइयों के 
अरमान बदल जाते....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

रविवार, 10 नवंबर 2013

कितनी बयार


चलते गए मीलो हम पुराने हुए....
गिनते गए पत्थर आज जमाने हुए....!!!

रात भर फूँको से जलाए रखा अलाव...
कितनी बयार आई लोग वीराने हुए.....!!!

सदाये गूँजती रही जी भर अकेले मे....
कल के जुगनू देख आज शयाने हुए.....!!!

ज़िंदगी भी बस कैसी रिफ़्यूजी ठहरी....
भागते-भागते ही गहने पुराने हुए....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

भूल गए


बरसो बाद भी पास बुलाना भूल गए.....
आज के लोग हमे पहचानना भूल गए.....!!!

बड़ी मोहलत दे दी हमने ज़िंदगी को.....
प्यासे समुंदर आँखें मिलाना भूल गए.....!!!

जुगनू ने यारी ऐसी भी क्या निभाई....
परवाने सम्मो से मिलावाना भूल गए......!!!

नज़्म कितनी अभी भी लटकी सीने मे.....
कूँची पड़ी अकेली कैनवास लाना भूल गए.....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

खामोशियाँ


लोग अकसर पूछते कि टैग "खामोशियाँ" ही क्यूँ...
मैं कहता.....

कल्पना का साथ आखिर तक देती है खामोशियाँ....
बिखरे शब्दों को पकड़ के लाती है खामोशियाँ.....!!!
ये मायूस चेहरे कह जाते लाखों लफ्ज चीखकर.....
उन चीखों को धागों में पिरोती है खामोशियाँ....!!!
©खामोशियाँ-२०१३

वादियों के गुलाब मुंह फुलाए बैठे हैं....!!!


कितनों को हम सर चढ़ाये बैठे हैं....
दिल लगता नहीं पर लगाए बैठे हैं.....!!!

रास्ते कहाँ आज गुलदस्ते थामे....
वादियों के गुलाब मुंह फुलाए बैठे हैं....!!!

नजूमी ले गया जायचा भूल से....
चेहरे इन लकीरों मे उलझाए बैठे हैं....!!!

ज़िंदगी कुछ तेरी थी कुछ मेरी भी....
किस्तों के कई मकान बनाए बैठे हैं.....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

सोमवार, 4 नवंबर 2013

सितारे टाँक ले


टूट रही हो आरज़ू तो याद फाँक ले....
फट गई बदली चले सितारे टाँक ले....!!!

आसानी से कहाँ मिलती है मोहब्बत...
राहों के उजाले तले इशारे झाँक ले....!!!

बड़े अधूरे वादे रखे गमों की पोटली मे....
देख रहे लोग चले किनारे ढ़ाँक ले.....!!!

©खामोशियाँ-२०१३