बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 15 सितंबर 2012

पता पूछती जिदगी..!!!

जिंदगी मजिल का पता पूछते बीत गयी...!!!
हर सुबह रोज निकलती घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी पनवडिये को देख गयी...!!!
चार तनहाइयों बाद एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज मेरे कान को खुजला गयी...!!!
हमने भी देख लिया खांचो में बसे अपने दर्द को,
और एक बयार पुर्जा थामे आसियाने पंहुचा गयी...!!!
इस बीच क्या हुआ किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में बिना चाय पीये निकल गयी...!!!

लौटकर हमने मेज पर देखा तो पाया,
जाते जाते वो अपनी यादें ही भूल गयी...!!!
हिम्मत नहीं कि उड़ेल दे पिटारे उसके,
यूँ साँसे चौपते ही उसे बक्से में रख गयी...!!!

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