बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

यह ना होती...!!!


खुद ही भुला रखा अपनी सल्तनत का पता ..
उदासियों की बस्ती से कोई नागरिकता नहीं होती ..!!

चिराग तन्हाइयों का हो या फिर महफिलों का..
उनकी कभी हवाओं से दोस्ती-यारी नहीं होती ..!!

यूँ टपकते छत तले रात ना कटती.. 
गर तरबीयत इन शानदार हवेलियों में होती ..!!

बातों में हमारी सच्चाई के बोल थोड़े कम हैं
वरना आजकल खबरों में सब खैरियत न होती ..!!

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