बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

फूटबाल

हर रोज़....
साहिल पर बैठे.......

निहारता
एक गोल मटोल....
फूटबाल...
गिरता जाता 
मटमैले पाले मे...!!

कभी गुलमोहर की ओट लिए... 
झाँकता आखें छुपाए...!!

शब खेल रही आँख-मिचौली...
और पकड़ गया गोला...
अब जाना होगा तुझे....
कल फिर आना...!!

~खामोशियाँ©

1 टिप्पणी:

  1. ये खेल निरंतर चलता रहता है! बस पारी बदलती है! आज किसी और निर्णय को ले कर फुटबाल के अगले दिन आने तक मैदान वही .......

    फिर वही दौड...

    गहरे भावार्थो को लिये आपकी अत्यंत ही सार्थक रचना !

    बहुत खुब दोस्त !

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