बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

छांव की शर्बत...


दो-चार
गुल तो मेरे
आगन मे
भी पड़े हैं...!!

लूह के
चाटे खाये
लाल गाल लिए...!!

तोड़ दूँ
तो मर जाये...
छोड़ दूँ
तो मर जाये...!!

दिन भर
गमला थामे..
दौड़ता रहता
इधर-उधर...!!

छांव की
शर्बत पिलाते...!!
अब कहाँ
मिल पाती
नींबू पानी शर्बत...


~खामोशियाँ©

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें