बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 29 जुलाई 2013

टंकार


कुछ नयन मे भी पानी है
कुछ जघन विपत्ति भी आनी हैं....!!

क्या करू कुछ समझाओ...
कुछ मार्ग हमे भी सुलझाओ...!!

लड़ने की ललक ना कम होती
तन मन मे वो ज्वाला भरती...!!

यूं हम भी तो मतवाले हैं...
ना रुका ना रुकने वाले हैं....!!

ले आएंगे वो काँच कवच....
खुद ब्रम्हा ही बतलाएंगे सच...!!

जो दान दिये थे कर्ण ने...
या भीख लिए थे अर्जुन ने...!!

छीन के हम वो सब लाएँगे...
खुद अपना भाग्य बनाएँगे...!!


©खामोशियाँ

बुधवार, 24 जुलाई 2013

महगाई की मार:


कैसे कैसे दिन भी अब आने लगे हैं....
थैले पड़े टमाटर भी मुसकाने लगे हैं...!!

दिन गुजरता था सूखी रोटी पकड़े....
जमे घी रुपया भी पिघलाने लगे हैं...!!

चाय फीकी पड़ती आजकल की...
अदरक का स्वाद बंदर सुनाने लगे हैं....!!

सलाद मे कटे मिलता था कल तक....
आजकल प्याज़ भी आँखें मिलाने लगे हैं...!!

©खामोशियाँ

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

अकेला मकान...


खालिश शहरों के इंसान देखे हैं....
हमने करीब से कब्रिस्तान देखे हैं....!!

लोग ठहरते ही कहाँ आशियाने मे...
हमने अकेले मे रोते मकान देखे हैं....!!

तोड़कर रिश्तों की चारदीवारी को...
हमने रोज़ भागते समान देखे हैं...!!

अपनों की पूछ हैं ही कहाँ किसी को...
हमने गैरो की मन्नतें अज़ान देखे हैं...!!!

©खामोशियाँ

शनिवार, 20 जुलाई 2013

जंग की गंध


हवाओं की बेरुखी मे....
साफ मौजूद वियतनाम की चीखें...!!


घर-घरो के वारीस....
शमशान छेकाए बैठे....!!

ऊपर चीलम फूकता चीन...
बारूद-बोझल ऊंगता पड़ोसी का खेत...!!

इजराएल की सूखी रेत...
कितनो का खून निचोड़ेगी....!!

दुनियावालो का गुलाबी मांस...
कब तक खाएँगे ये बारूदी गिद्ध....!!

©खामोशियाँ

रविवार, 14 जुलाई 2013

मुसाफ़िर


कड़ी धूप पसरी हैं टटोलते आना....
इधर गुजरना उन्हे छोड़ते जाना...!!

इलाके रहेंगे जहां लोग ना ठहरते....
यादों के पिटारे बस छुपाते जाना...!!

रात की खामोशी पूछेगी रास्ता...
झींगुरों की आवाज़े बताते जाना...!!

आज देर रात ना जगेगी चाँदनी...
आना तो ज़रा उसे जगाते जाना...!!


©खामोशियाँ

शनिवार, 13 जुलाई 2013

फुर्सत


अंजुरियाँ रूठ गयी थी....कलम सिसक रहे थे....नोट पर गोजने खातिर देख कैसे तरस रहे थे....!!!
आज रहा ना गया बस लिख दिया कुछ ऊबड़ खाबड़ पंक्तियाँ भाव मे अंदर तक डूबना फिर बताना कैसा रहा सफर...ऊपर ऊपर तैरने पर गहराइयों का अंदाज़ा ना लगा पाओगे ए बशर...!!
तो पढ़िये ताज़ातरीन ग़ज़ल....!!

कितनों ने कितना जख्म बखश़ा है...
आज उसका हिसाब करने बैठा है...!!

ज़िंदगी भर काम आए जो वसूल....
आज उन्हे ही बंदा बेचने बैठा है...!!

जिन चिरागो ने तेल कभी नहीं पीया...
आज उनको जाम पिलाने बैठा है...!!

बदल जाती चाहने वालो की तस्वीर...
आज कल कौन दर्द भुलाने बैठा है...!!

गैरो को फुर्सत कहाँ अपने पास आने की...
आज अपना ही हमे रुलाने बैठा है...!!



©खामोशियाँ

बुधवार, 10 जुलाई 2013

बाजू की विंडो सीट....!!


आज भी खाली रखता...
बाजू की विंडो सीट...!!

एक अक्स..............
...............एक आस
टहलती हैं इर्द-गिर्द...!!

उसे बैठाने..............
.............पास बुलाने
खातिर बहाने बनाता...!!

हर मंज़र...............
..................हर वादे
पीछे भाग रहे...!!

बस समय.............
................बस याद
थमी बैठी शिथिल...!!

फिर भी कहीं कभी जरूर....
भरेगी वो अकेली..........

.........बाजू की विंडो....!!


©खामोशियाँ