बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

अकेला मकान...


खालिश शहरों के इंसान देखे हैं....
हमने करीब से कब्रिस्तान देखे हैं....!!

लोग ठहरते ही कहाँ आशियाने मे...
हमने अकेले मे रोते मकान देखे हैं....!!

तोड़कर रिश्तों की चारदीवारी को...
हमने रोज़ भागते समान देखे हैं...!!

अपनों की पूछ हैं ही कहाँ किसी को...
हमने गैरो की मन्नतें अज़ान देखे हैं...!!!

©खामोशियाँ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें