बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 30 मार्च 2014

अधूरी यात्रा


शाम के पाँच बजे हैं....प्रकाश थोड़ा थोड़ा थम रहा था....ट्यूब-लाइट जल चुकी थी....सभी अपने काम मे लगे थे....
"समोसे दस के दो"...."समोसे दस के दो"....बस इसी शोर से पूरा प्लेटफोर्म गूंज रहा था.....!!!
कचौड़ियाँ वाले....पूड़ी वाले अपनी धुन मे बोले जा रहे थे....हर ठेले पर बड़ी संख्या मे लोग कुछ ना कुछ खाये जा रहे थे।
ऊपर लाउडस्पीकर मे मीठी आवाज़ चल रही थी....."ट्रेन नंबर 12553 वैशाली सुपरफास्ट जो बरौनी से चलकर मुज्जफ़्फ़रपुर....छपरा...सीवान होते हुए दिल्ली तक जाएगी वो कुछ ही समय मे प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर आ रही है..."
कुछ ठेले वाले....कुछ किताब वाले.....अगल बगल यात्रियों से लिपटे खचाखच प्लेटफोर्म मे शायद अपने तो काफी थे पर टुकड़ो मे बंटे....यही कुछ चार-पाँच के गुच्छो मे....!!!
अक्सर अब बड़े प्लेटफॉर्म से कुर्सियाँ तो लापता हो गयी है....तो लोग खुद ही दरी बिछा कर नीचे ही बैठ जाते....!!
और बिना मतलब की गुफ्तगू चालू....टाइम जो काटना सभी को....उस पर कुछ दिग्गज तो ऐसे मिलते जिनके पास बोलने के लिए भगवान ने रेडीमेड टेपरेकॉर्ड दिया है बस ऑन कर और चालू कर दो....!!!

विकास शुक्ला भी कारोबार के सिलसिले मे दिल्ली जा रहे थे....उनकी श्रीमती और बच्चे बरौनी मे ट्रेन पर चढ़ चुके थे। असल मे शुक्ला जी अपना बिज़नस गोरखपुर मे डाले थे, पर उनका पूरा परिवार बरौनी मे ही बसा था। शुक्ला जी गोरखपुर विश्वविद्यालय के बड़े मेधावी छात्र रहे थे। पर आर्थिक तंगी और कुछ प्रारब्ध के खेल ने उन्हे बड़ा ओहदा पाने से वंचित कर दिया।
अरे शुक्ला बाबा काहे घबरात हवा हो...."पांडे जी का सुना उनका एक बड़ा शोरूम है दिल्ली मे जाएगा तो बता दीजियेगा यादवजी ने भेजा है वो आपको ले लेंगे...अरे वो सब अपने लंगोटिया यार है....अब नहीं काम आएंगे तो कब आएंगे...."

ऐसे ही ना जाने कितने यादवजी टाइप लोग रहते हर ग्रुप के साथ जो कुछ यही बातें दोहराते है....पर जाने वाले भी तो उनकी बात कहाँ सुनते उनका ध्यान तो अपनी गाड़ी पर टिका रहता....!!!
लोग बैठे बैठे रहते...फिर झांक के अपनी ट्रेन को निहार आते....
प्लेटफॉर्म पर एक घड़ी इसीलिए टाँगी जाती....क्यूंकी भारत मे उसी को देख तो कुछ दिलासा मिलता रहता....पर लोगों की अक्सर शिकायत रहती की घड़ी धीमे चलती स्टेशन की....और वो भी बस तभी तक जब तक ट्रेन का राइट टाइम ना आ जाये...!!!

पाँच बजकर चालीस मिनट हो गए.....लोग और उतावले हुए पर ट्रेन नहीं आई....अब वो मीठे आवाज़ भी नहीं सुनाई पड़ रही थी....लोग बार बार पूछताछ की तरफ ही आँखें गड़ाए रहते थे.....पर वहाँ भी कोई जवाब नहीं....!!!
समय भागता जा रहा था....लोग परेशान होते जा रहे थे....यात्रियों मे कुछ परीक्षार्थी लड़के....कुछ बीमार लोग....कुछ के इंटरव्यू...उनको कई तरह के डर सताते जा रहे थे....बड़ी गहमागहमी जैसी होती जा रही थी....!!!
अचानक लाउडस्पीकर कुछ काँपा तो....पर कुछ बोले बिना ही रुक गया....ऐसा होते ही लोगों मे उत्सुकता का नया आयाम जोड़ दिया....अब लोगों मे ये जानने की ललक गहराती गयी की आखिर गाड़ी मे ऐसा क्या हुआ है...!!!

स्टेशन पर अफरा-तफरी का माहौल सा हो गया, लोग अपने अपने कयास लगाने लगे। अब शुक्ला जी का मन भी घबराने लगा, उनके हाव-भाव देख लग रहा था की चिंता की लकीरें उनके पूरे चेहरे को ढँक लेंगी। यादव जी ने ढाढ़स बँधाया।
अबकी बार लाउड स्पीकर पूरा रुवाब मे आया था...और ज़ोर से गरजा "यात्रियों से निवेदन है की दी गयी जानकारी को ज़रा ध्यान से सुने....ट्रेन नंबर 12553 मे जहरखुरानी हो गयी है....काफी सारे लोगों को इसकी वजह से बीच मे रोककर चिकित्सा के लिए भेज दिया गया है...अगर आपका कोई संबंधी ट्रेन मे था तो आप आकर अपना व्योरा हम तक पहुंचा दे....आगे कुछ जानकारी मिलेगी तो हम सूचित करेंगे..."

स्टेशन मे अफवाहों का बाजार गरम हो गया। लोग अपनी फालतू की बातें चालू कर दी।
अब तो मानो....विकास बाबू पर पहाड़ टूट पड़ा...श्रीमती का फोन भी नहीं लगा रहा था....उन्होने अपना समान समेटा और जल्दी से जाने लगे आरपीएफ़ ऑफिस के तरफ। आज ये 300 मिटर का फासला 3 लाख आशंकाओं को जनम देता चला गया। शुक्ला जी को अपना पता तक ठीक याद ना रह गया था, वे होश खोते जा रहे थे। यादव जी ने उनको जा कर बैठाया, और उनकी डीटेल नोट करवा दी।

यादव जी को भी थोड़ी जल्दी थी आखिर शहर मे कोई किसी के साथ कितना देर ठहरता। विकास बाबू के आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे। उनका तो संसार उजड़ चुका प्रतीत हो रहा था।

काफी देर तक कितनी ट्रेन आई कितनी गयी कुछ पता नहीं चला। शुक्ला जी ऐसे बैठे रहे मानो उनको स्टेशन पर ही जाना था, उन्हे कुछ याद ही नहीं था बस एक ही खयाल आ रहा था, प्रिया बेटा और साक्षी जाने कैसे होंगे, किस दशा मे होंगे।

लाल रंग की घड़ी 00:00 दिखा रही थी, तभी दिखा कुछ खाकी वर्दी मे लोग एक शक्स को हथकड़ी लगाए लिए जा रहे थे। कुछ फुसफुसाहट से विकास बाबू को संदेह हुआ की माजरा जहरखुरानी का ही है, वो खुद को रोक नहीं पाये, दारोगा जी से पूछ ही लिया...
"दारोगा जी क्या मामला है....वैशाली अभी तक आई नहीं...???"
दारोगा जी ने बाकी लोगों को जाने दिया और खुद रुके...
अरे "ये सबने पैंट्री कार वालों का ड्रेस पहन पूरा का पूरा डिब्बा ही साफ करने की प्लानिंग करके बैठे थे। एम-वक़्त पर सही सूचना से इनको दबोच लिया गया....पर इनका खाना खाने से काफी लोग गंभीर हो चुके है...और कुछ की जान भी गयी है....और वैशाली तो कब की जा चुकी है... "
"आपका भी कोई है क्या...." दारोगा जी ने थोड़ा नरमी से पूछा
"जी बीबी है और एक 7 साल की बिटिया है...." शुक्ला जी ने भरी आवाज़ मे बोला
"हे ईश्वर....खैर करे....आपके परिजन का नाम लिस्ट मे ना हो....बोलिए ज़रा नाम तो...."
विकाश बाबू...."चुप रहे...जैसे उन्होने कुछ सुना ही नहीं...."
दारोगा जी ने फिर कहा...."श्रीमान जी धीरेज रखिए बोलिए नाम ...."
साक्षी शुक्ला .... प्रीति शुक्ला

दरोगा जी ने लिस्ट मे बड़ी तेज़ी से निगाह दौड़ाई....और ठहर गए....उनसे बोलते ही नहीं बन रहा था कुछ....!!!
लिस्ट थमा दी विकास बाबू को....
विकास सब कुछ समझ चुके थे। पर फिरभी मन को दिलासा देने के लिए सूची मे नाम खोजने लगे।
पूरी लिस्ट खत्म होने को आई ही थी कि विकास की निगाहें दूसरे पेज की मृतक सूची मे आखिरी के दो नामो पर रुकी.....
विकास टूट चुके थे... "सोच रहे थे भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकता....क्या वो नीचे के दो नाम हटवा नहीं सकता था....क्या मेरी कर्म-धर्म मे कमी थी....क्या भगवान लिस्ट बदल नहीं सकता उसके यहाँ तो कई सारे पेपर है पेन है प्रिंटर है उसको कौन कमी..."

अगले दिन फिर पाँच बजे फिर वही सूचना हुई... वही मीठी आवाज़...."ट्रेन नंबर 12553 वैशाली सुपरफास्ट जो बरौनी से चलकर मुज्जफ़्फ़रपुर....छपरा...सीवान होते हुए दिल्ली तक जाएगी वो कुछ ही समय मे प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर आ रही है..."
लोग आए फिर वही सब माहौल पर आज एक शक्स लापता था.....विकास....
दुर्घटना एक दिन मे ही पूरे जीवन के कितने मायने बदल के रख देती....!!!

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

अंजान सफर


(सीन 1)
अचानक एक कार रुकी....
बड़ी ज़ोर सी आवाज़ आई....रोहन.....बीप बीप
बालकनी से रोहन ने झांक के देखा एक अजब सी रंगत थी उसके चेहरे पर....आज वीकेंड तो नहीं था पर.....
उँगलियों मे चाभी सुदर्शन जैसे घुमाते....बड़ी तेज़ी से उतरता गया सीढ़ियों से.....
ठंड के मारे गाड़ी भी दुबकी पड़ी थी....सेल्फ स्टार्ट अपनी अजीब से धुन से लोगों की सुबह की नींद उड़ा रहा था....!!!
कार की काले शीशे परत हटा एक हट्टा-कट्टा नवजवान....गले मे चमकता चेन लपेटे हाथो मे ब्रेसलेट की हथकड़ी लगाए....बोल पड़ा....!!!
"रोहन क्यूँ नहीं बेंच देता ये खटारा कबसे ढो रहा इसे....."
रोहन ने बात को अनदेखा कर तेज़ी से किक करने लगा....
डर्र...डर्रर....डर्रडर्रडर्रर्रर्रर्रर्रर्र....स्टार्ट हो गयी.....
अजय से रहा ना गया...."चल स्टार्ट तो हो गयी तेरी रोहनप्यारी"
अब जल्दी चल वरना देर हो जाएंगे....7 तो यही बज गए....!!!
रोहन ने जवाब दिया...."अजय चल मैं आ रहा हूँ...."
अजय से रहा नहीं....कार बगल लगाई....और बोला...."अबे मुझे क्या विलन बनाने का ठेका दे रखा है....चल तू मैं भी चलूँगा...."
रोहन ने बड़ी मशक्कत की पर....अजय नहीं माना.....!!!
और चल दिये दोनों एक लंबे सफर पर......



(सीन 2)
अब दोनों ही उड़ रहे थे खुले विचारो मे....ना किसी का रोक-टोक ना ही कोई अवरोध.....
गाड़ी की रफ्तार भी उनके बालों की हरकत से निकाली जा सकती थी.....
कभी रोहन गाना शुरू करता तो अजय उसे आगे बढ़ाता तो कभी अजय मुखड़ा गाता तो रोहन उसे खत्म करता....बड़ी अच्छी ताल-मेल थी....वो कहते है जैसे होती जय-वीरू टाइप....!!!
अब दोनों पहुँच चुके थे....अपने अड्डे पर.....!!!
शायद रोहन को इस जगह आने का पता ना था....
तभी भवें उठाए बोला...."ये जगह......sssss....तो जानी पहचानी सी लगती...."
"हाँ हाँ"....तपाक से अजय ने सर हिलाकर उसे संतुष्ट किया....!!
रोहन ने चारो-ओर नज़ारे घुमाई और कुछ पल के लिए तो सहम सा गया....हर रील उसे ब्लैक-एंड-व्हाइट जैसे स्लो मोशन मे चलती नज़र आ रही थी....जैसे वो कभी आए है यहाँ....कितना लगाव है इस जगह से उसे....!!!
बड़ी देर तक रोहन को कुछ ना बोलते देख अजय ने उसके गालो को सहलाते हुए बोला...."याद है बे कभी हम यही आके अपने सपनों को बुनते थे....पर....अबबबबब...."
(अजय की आवाज़ मे अब वो दम ना था)
रोहन बड़ी सहजता से माहौल गमगीन होने से बचाते हुए बोला...."अबे गाड़ी वाड़ी....चैन-सेन बड़े आदमी बन गया तू....अब तो...."
अजय ने नज़रे चुराते बोला...."अपना क्या है बे सब बाप का है....उनका ही पहनो....उनका ही खाओ....अपने सपनों पर तो दीमक लग गए....ज़रा देख उस पेड़ को आज भी वो हमारी दोस्ती पहचानता, कैसे चुप-चाप हम दोनों को देख रहा...."
अजय ने बात पलटने की भर-पूर कोशिश की....
पर रोहन मानने वाला ना था....उसकी जिज्ञासा एवरेस्ट चढ़ती जा रही थी...."क्या हुआ बे तेरी फोटोग्राफी का....बाबूजी का दिया है तो क्या दिक्कत...."
"फोटोग्राफी गयी तेल लेने".....अपने को बिज़नस थमा दिया अब क्या ग्राहको की फोटो खींचता रहूँ....
मैंने बाबूजी को समझाया पर उन्होने कुछ नहीं सुनी.....बस अब उसी मे रमा हूँ मन तो लगता नहीं पर क्या करे....???
"बाबूजी ने धंधे मे बड़े घाल-मेल किए है....कितनों के कर्ज़ो से लदा हूँ मैं.....अब मुझे एक तो ये बिज़नस समझ नहीं आता....ऊपर से रोज़ तड़े रहते लोग अपना पैसा मांगने लिए.....क्या कहूँ....क्या करूँ...."
कभी-कभी सर फोड़ने का मन सा होता....
अजय ने भी पलटते हुए सवाल किया
ओहह.....माजरा अब रोहन के पल्ले पड़ चुका था.....
बड़ी देर चुप-चाप सा हो गया वो....
"आज भी काम का बहाना लेके तेरे से मिलने आया हूँ.....ऐसी भी क्या कमाई की लोग अपने यारो को भूल जाये....और तू भी तो कभी याद नहीं करता...."
और तेरे सपने का क्या....रोहनप्यारी को क्यूँ रुलाता है रे उसे आराम करने दे अब कितने किस्सो मे उसको जोड़ेगा.....वो थक गयी है अब यादों का बोझ उठाते 
"मेरे सपने....हा हा हा .... गरीबों के सपनों मे भी सरकार टैक्स लगाती ये नहीं पता तुझे...."...रोहन ने पलटी मारी....
टैक्स लगाती....????
हाँ टैक्स लगाती....लोन लेके आईएएस की तैयारी करने गया था दिल्ली....उसकी खातिर अपने आप को भट्ठी मे झोंक दिया पर....किस्मत मुंह छुपाये खड़ी रही मुझसे....!!
बैंक वालों ने कंगाल कर दिया....उसी बीच बाबूजी का देहांत हो गया.....!!!
माता जी भी उसी वियोग मे ज्यादा न जी सकी....!!
"अबे हम तो बर्बाद हो गए रे.....!!!"
"बस एक पेपर मिल मे टाइपिस्ट हूँ...गुज़र बसर हो रहा"
"अब तो इक्षा ही नहीं रही कुछ पाने की....या खोने की...."
(रोहन ने आँखों को रुमाल से पोछते हुए कहा)
अजय से अब रहा ना गया....उसके आँख भी सहसा रो पड़े....चाचीजी....चाचाजी.....हे भगवान.....!!!
अब दोनों इतने शांत हो गए की अब झरनो की कोलाहल कानो को डंस रही थी.....!!!
कुछ रोहन बोलता....कुछ अजय....फिर शांति....
फिर अजय बोलता....और रोहन .... फिर शांति....
और देखते ही देखते साँझ हो आई....

(सीन 3)
दोनों लौट रहे थे.....रात ऊपर आ चुकी थी.....
सड़कों से कितने दोराहे...तिराहे....छिटक रहे थे....
शायद...इन्ही तिराहो पर फिर से छिटक जाएंगे....
ना जाने कितने रोहन-अजय के सपने....!!!!
गाने मोबाइल से निकाल अब कानो को सराबोर कर रहे थे....
.......और गाना चल रहा था.....
"सारे सपने कहीं खो गए....हाय हम क्या से क्या हो गए".....
(स्वर-अल्का यागनिक, गीतकार-जावेद अख्तर, फिल्म- तुम याद आए)

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

शनिवार, 22 मार्च 2014

बदलाव


टूटे-फूटे जर्जर
कुल्फीयों के साँचे,
सर्दियों की
रज़ाई से निकाल आए....!!!
किसी को 
नज़ला हुआ...
कोई खांसी से परेशान...!!!

सभी अनसन पर है....
बुजुर्गो को पेंशन दो....
हमारी आमदनी निर्गत करो....!!!

बड़ी टाल-मटोल बाद
वैद्यजी बुलाये गए
नब्ज़ टटोल
कुछ तो फुसफुसा रहे....!!!

कह रहे होंगे....
बदलाव का मौसम,
बिना चोट के कहाँ जाता....!!!

©खामोशियाँ-२०१४ 

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

पुराने कांटैक्ट


सेल-फोन बदलते ही
गृह-प्रवेश होता,
कुछ नए/पुराने कांटैक्ट* का....!!!
कुछ डिलीट** करते
कुछ संजो लेते....!!!


जीवन भी तो ऐसे ही
करवट लेता,
नए चेहरे के साथ...
नए रिश्तेदार....!!!

खामखा परेशान रहते,
ख्वाइशों की रंगीनीयों मे...
क्या फायदा,
ज़िंदगी बैकप*** नहीं बनाती..
नए सिरे से लिखती है फिरसे....!!

(contact* delete** backup***)


©खामोशियाँ-2014

गुरुवार, 20 मार्च 2014

मुखौटे



हजारों मुखौटो में से तुझे ही उठाता हूँ.....
चेहरा देखा नहीं फिर भी बताता हूँ.....!!

कलम भरी पोटली अपने सर लादे....
सबके हाथों से मिटी लकीरें सजाता हूँ....!!

इन्सानो के महफिल में ठहरा रहा....
यादों को ज़िंदगी का जाम पिलाता हूँ....!!!

चीख़ों से सजी एक चारदीवारी में....
तांवों को तपाकर एहसास पकाता हूँ....!!!

बेवकूफ़ियाँ बढ़ा लीं हैं खुद की इतनी....
तनहाइयाँ भगाकर परछाइयाँ बुलाता हूँ....!!!

©खामोशियाँ-२०१४

शनिवार, 15 मार्च 2014

यादें १


कई बरस हुए
अब नहीं जाता उस गली से....

चौराहे पे तपती
धूप मे खड़ा लंबा पोल
आजकल मुझे देख मुंह फेर लेता....!!!

पाँव मे लकवा खाए
अभी भी अड़ा खड़ा
गवाह है वो हमारी सारी मुलाक़ातों का...!!!

पर देख उसमे भी
अनगिनत कमी निकाल
आज लोगों ने उसे भी बदल दिया...!!!

साथ ही भस्म
हो गए डायरी से लिपटे अधूरे पत्र....
नज़्म की बॉटल भरी खारी छाछ भी लापता....!!!

कल जाऊंगा तो
इश्तिहार लगाऊँगा....
नाम...रंग...साथ अपनी एल्बम की तस्वीर....!!!

©खामोशियाँ-२०१४

गुरुवार, 13 मार्च 2014

रंग की दुनिया


मत-भेद कहाँ है रंगो मे.....
लिपटा रहता है अंगो मे.....!!!

दूर-दराज़ को पास बुला के....
चलता रहता है संगो मे.....!!!

जात-पात की आग भुला के....
मिलता रहता है पंगो मे.....!!

काबे-काशी को गले लगा के ....
लुटता रहता है दंगो मे....!!

श्वेत-श्याम का भेद मिटा के....
घुलता रहता है जंगों मे....!!!

©खामोशियाँ-2014

आज का समाज


कितने साँचो मे यूँ ढलता है समाज ....
भट्टी की ओट मे छुपा सेंकता है आज....!!!

बड़ी जल्दबाज़ी मे दिखते आजकल लोग....
कलाई की घड़ी मे दबा ताकता है आज.....!!!

चाँद की भीनी रोशनी जेब मे छुपाए
सूरज की पोटली से पड़ा झाँकता है आज.....!!!

कभी छप्पन-भोग लादे चलता था....
नीम की गोली मे खोया फाँकता है आज....!!!

©खामोशियाँ-२०१४