बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

आजकल



अपने ही को देखकर वो शर्माने लगे है,
आईने भी आजकल नज़र छुपाने लगे है।

आँखों की खेतों में कितने ख्वाब उगते,
दिल की डाली पर फूल मुस्काने लगे है।

वादों की पोटली यादों से ही भरती जाती,
साये उजालों के दामन से लगाने लगे है।

कहना तो रहता कितना कुछ एक बार में,
जुबां खामोश रहते इशारे समझाने लगे हैं।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(२४-अक्तूबर-२०१४)

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