बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

नाकाम



नाकाम हो जाए गर तो क्या करे,
वक़्त जोड़ दें या फिर शिकवा करे।

कशिश तो रहती हर बातों में ऐसी,
दिल रोक लें या फिर चलता करे।

वजूद भी घिसटता है दर-बदर ऐसे,
रिश्ते मोड दें या फिर बहका करे।

आदत पड़ी है तो बदल कैसे पाएगी,
आँखें खोल दें या फिर चहका करे।

ढूंढने पर खुदा में भी कमी मिलेगी,
आज छोड़ दें या फिर झगड़ा करे।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२९-अक्तूबर-२०१४)(डायरी के पन्नो से)

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