बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 30 नवंबर 2014

एहसासों की पेंटिंग


अकसर
कूंची मुँह में
दबा दबाकर।

कैनवस
भरती है
बेचारी जिंदगी।

सारे
ख्याल रंगों की
प्याली में घोलकर।

ब्रश
डोलाती जाती
उसे पता न होता
कब उसने क्या उकेरा।

फिर
शान बढ़ाती है
किसी अमीरज़ादे
के ड्राइंग रूम की।

आखिर
खरीदा है जो
उसने एहसासों भरी
ख्वाबों की हमारी पेंटिंग ।

कॉपीराइट © खामोशियाँ - २०१४ - मिश्रा राहुल

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