बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

हाँ मैं गुस्सैल हूँ



हाँ मैं
गुस्सैल हूँ...!!

रोज
सपने अपने
खोजता हूँ...!!

रोज गैरों
में अपना
खोजता हूँ...!!

अपने छोड़
देते अक्सर
दामन मेरा...

मैं फिर
भी उन्ही
को खोजता हूँ...!!

किस हाल
में होंगे वो...
इसी बात
को पकड़
सोचता हूँ...!!

चिल्लाकर
झल्लाकर
फिर वापस
वहीँ को
लौटता हूँ...!!

हाँ मैं
गुस्सैल हूँ...!!

©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // १०-दिसम्बर-२०१४

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