बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

वजूद



वजूद भी घट रहा धीरे-धीरे,
यादों से मिट रहा धीरे-धीरे..!!

रास्ता धुधला पड़ा बात लिए,
ख्वाब सिमट रहा धीरे-धीरे...!!

एक धूल लतपथ सांझ खड़ी,
कारवां घिसट रहा धीरे-धीरे...!!

मंजिल मिलेगी भी खबर नहीं,
डर लिपट रहा हैं धीरे-धीरे...!!

चेहरा बिखरा कई हिस्सों में,
वक़्त डपट रहा है धीरे-धीरे...!!

©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // २५-दिसम्बर-२०१४

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