बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

ज़िन्दगी की किताब



लिखी है
थोड़ी बहुत
हमने भी
ज़िन्दगी
की किताब

कुछ टूटे
फाउंटेन पेन*
कुछ लाल
धब्बे मौजूद हैं
पहले ही
पन्ने पर.....!!

तारीखे हैं,
बेहिसाब
एक बगल
पूछती हैं
ढेरों सवाल..!!

दर्ज़ हैं
सूरज की
गुस्ताखियाँ
दर्ज़ हैं
ओस की
अठखेलियाँ...!!

रिफिल*
नहीं
हो पाते हैं
कुछ रिश्ते,
तभी आधे
पन्ने भी
बेरंग से लगते .....!!

*Fountain Pen *Refill
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // १३-दिसंबर-२०१४

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