बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 25 जनवरी 2015

फासला


कभी तुझमें तो कभी मुझमें पलता है,
ये फासला भी तो कुछ ऐसा चलता हैं।

दूरियाँ वजह होती नहीं दूर होने की,
एहसास मन का कुछ ऐसा बोलता है।

ओढ़ता हूँ तो पाता बहुत करीब मेरे,
दिल के पास कोना ऐसा मिलता है।

बस एक तू ही तो जो रूबरू है मुझसे,
वरना हमसे जमाना ऐसा जलता है।

©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२५-जनवरी-२०१५)

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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