बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

रहमत के फतवे



रहमत के फतवे लेकर दिखाया ना करो,
प्यार किए तो किए पर जताया ना करो।

मुडेरों पर बैठा करते ये काठ के कबूतर,
चिट्ठियों के लिए उन्हे भगाया ना करो।

इम्तेहाँ लेती रहेगी हर परग ये जिंदगी,
आँखें नम करो पर इसे बताया ना करो।

गुनाह तो बहुत हुए है तुमसे भी सोचो,
हर खता की दरख्वास लगाया ना करो।

दास्ताँ हैं तो उसे लिखकर रखना कहीं,
कागज चुनकर हर रोज छिपया ना करो।
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रहमत के फतवे (१४ - अप्रैल -२०१५)
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल

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