बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 2 मई 2015

हौसला



जलती राखों पर खाली पाँव ही चलते है,
कोयले के खदानों में सूरमा ही पलते है।

हौसलों की चिंगारी जलाई ऐसी उम्मीद,
हाथो में लेकर सूरज आँखों में मलते है।

चाँद पूरा हो या आधा फर्क नहीं पड़ता,
अकेली शब में जुगनू जेबों मे रखते हैं।

दिखाओ तो दो बस कहाँ है मजिल मेरी,
पाने की ख्वाइशें तो जन्नत की करते है।
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हौसला | खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल

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