बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 17 अगस्त 2015

लप्रेक ३


घुप अंधेरे में धर्मशाला फ्लाईओवर पार करते। उसने बस ये कहा कि रात को शहर इतना खामोश क्यूँ हो जाता है मानो चाँद इयरफोन लगाकर बातें सुनता।
जैसे दिन में शहर तेरी बक-बक से इतना शोर हो जाता की मेरी फरमाइश तुम्हारी माइक तक नहीं पहुँचती मिस आरजे। व्हाट्सएप फरमाइश नहीं चलती क्या तुम्हारे एफ़एम मे।

कभी बाजा भी दो। "प्यार तो होता है प्यार। फिल्म-परवाना"

दिनभर एक तरफा वाकी-टाकी लगाए तुम बोलते रहती। सुनो ऐसा क्यूँ न करे मैं भी दूसरे एफ़एम आरजे बन जाऊँ और फिर बातें होती रहेंगी पूरे शहर के बीचों-बीच।

दूर जाती मोटरसाइकल में दोनों की आवाज मद्धिम होते चली गयी।

©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१६-अगस्त-२०१५)

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